Sunday, September 20, 2015

मैं सूरज का हस्ताक्षर हूँ, तम से कैसे हार मान लूँ
पैरों पर विश्वास मुझे है, पथ से कैसे हार मान लूँ
चाहे जितनी चलें हवाएँ, आग भरें तूफान मचाएं
ज्योति किरण हूँ, अंधियारे का, मैं कैसे अधिकार मान लूँ ।

अन्धकार का ह्रदय चीर कर, सूरज मुझे उगाना होगा
हिम शिखरों की ज्योति किरण को, घाटी तक पहुँचाना होगा
इस उधार के उजियारे का, मैं कैसे उपकार मान लूँ
मैं सूरज का हस्ताक्षर हूँ, तम से कैसे हार मन लूँ

मात्र स्वयंभू बन जाने को, मैं कैसे अवतार मान लूँ
मैं तो स्वयँ विश्वकर्मा हूँ, श्रम से कैसे हार मान लूँ
मुझको अभी बहुत कुछ करना, किस्मत पर क्यूँ विशवास मान लूँ
पैरों पर विश्वास मुझे है, पथ से कैसे हार मान लूँ